Shodashi No Further a Mystery

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॥ अथ श्रीत्रिपुरसुन्दरीचक्रराज स्तोत्रं ॥

It had been right here also, that the great Shankaracharya himself set up the picture of the stone Sri Yantra, Probably the most sacred geometrical symbols of Shakti. It may possibly nonetheless be seen nowadays within the internal chamber of the temple.

सच्चिद्ब्रह्मस्वरूपां सकलगुणयुतां निर्गुणां निर्विकारां

The essence of such rituals lies while in the purity of intention as well as the depth of devotion. It isn't basically the external steps but The inner surrender and prayer that invoke the divine presence of Tripura Sundari.

पद्मरागनिभां वन्दे देवी त्रिपुरसुन्दरीम् ॥४॥

यत्र श्री-पुर-वासिनी विजयते श्री-सर्व-सौभाग्यदे

कैलाश पर्वत पर नाना रत्नों से शोभित कल्पवृक्ष के नीचे पुष्पों से शोभित, मुनि, गन्धर्व इत्यादि से सेवित, मणियों से मण्डित के मध्य सुखासन में बैठे जगदगुरु भगवान शिव जो चन्द्रमा के अर्ध भाग को शेखर के रूप में धारण किये, हाथ में त्रिशूल और डमरू लिये वृषभ वाहन, जटाधारी, कण्ठ में वासुकी नाथ को लपेटे हुए, शरीर में विभूति लगाये हुए देव नीलकण्ठ त्रिलोचन गजचर्म पहने हुए, शुद्ध स्फटिक के समान, हजारों सूर्यों के समान, गिरजा के click here अर्द्धांग भूषण, संसार के कारण विश्वरूपी शिव को अपने पूर्ण भक्ति भाव से साष्टांग प्रणाम करते हुए उनके पुत्र मयूर वाहन कार्तिकेय ने पूछा —

ह्रीं‍श्रीर्मैं‍मन्त्ररूपा हरिहरविनुताऽगस्त्यपत्नीप्रदिष्टा

या देवी दृष्टिपातैः पुनरपि मदनं जीवयामास सद्यः

श्रीचक्रान्तर्निषण्णा गुहवरजननी दुष्टहन्त्री वरेण्या

The noose signifies attachment, the goad represents repulsion, the sugarcane bow represents the head as well as arrows tend to be the 5 feeling objects.

Shodashi’s affect promotes instinct, encouraging devotees accessibility their inner knowledge and acquire belief inside their instincts. Chanting her mantra strengthens intuitive capabilities, guiding people towards choices aligned with their best superior.

The Goddess's victories are celebrated as symbols of the final word triumph of excellent about evil, reinforcing the moral fabric of the universe.

श्रीमत्सिंहासनेशी प्रदिशतु विपुलां कीर्तिमानन्दरूपा ॥१६॥

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